Saturday 14 September 2013

भाई-भाव बचाइए

चित्र श्री हिमांशु व्यास जी ने लिए हैं
मनुष्य इस संसार का एक भाग है और वह सदा अपने को विकसित करना चाहता है। अपने को बड़े दायरे में पहुंचाना चाहता है। इसके लिए अनेक तरह के कारणों को खोजता है, अनेक तरह के सम्बंधों को बनाता है और मित्र बनाता है, सहयोगी बनाता है, कुछ लोगों को पिता का दर्जा देता है, कुछ लोगों को बराबरी का दर्जा देता है। कुछ लोगों को सखा बनाता है। उसे आगे बढऩे के लिए बहुत सारे सम्बंधों की आवश्यकता पड़ती है, बहुत सारे संसाधनों की जरूरत पड़ती है। सम्बंध को विकसित किए बिना कोई बड़ा नहीं हो सकता। सम्बंध जरूर विकसित होने चाहिए। किन्तु सम्बंध जितने भी हों, कम हैं, बाकी सम्बंधों से भातृत्व की बराबरी का कोई प्रश्न नहीं है। अन्य सम्बंध तो बनाए जा सकते हैं, जन्म लेने के बाद, आवश्यकता के अनुसार, अपनी समझ के अनुसार, मनुष्य सम्बंधों का निर्माण करता है, सम्बंधों को चित्त में रखता है, किन्तु भातृत्व तो स्वयं बनता है, बनाया नहीं जाता। एक माता-पिता से जब हम जन्म को प्राप्त करते हैं, एक ही मां के गर्भ में रहकर जब हम अस्तित्व में आते हैं। कोई हमारे पहले आता है, तो बड़ा भाई हो जाता है, हम बाद में आते हैं, छोटे भाई हो जाते हैं, हमारे बाद जो आता है, वह हमारा छोटा भाई हो जाता है। यह सम्बंध अकृत्रिम है। बाकी सम्बंधों को कृत्रिम कहा जा सकता है, जो बाद में बनते हैं। इस सम्बंध का मूल समान माता-पिता से पैदा होना है, माता-पिता की समानता है। जिनके माता-पिता एक हैं, उन बच्चों में भातृत्व होता है। इस सम्बंध को इतना महत्व इसलिए पूरे संसार में मिला, क्योंकि यह कृत्रिम नहीं है। कहा जाता है और सभी लोग स्वीकार करते होंगे, भारत भर में यह बात तो बहुत जोर-शोर से कही जाती है कि पुत्र भले ही कुपुत्र हो सकता है, दूसरे सम्बंध भी बिगड़ सकते हैं। बाकी सम्बंध सहयोगी दृष्टि खो सकते हैं, किन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती। दूसरे सम्बंध, स्वजन, परिजन तमाम तरह की वाहियात बातों से जुड़ जाते हैं, दुर्गुणों और दोषों से ग्रस्त हो जाते हैं, किन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती, उसका स्तर नहीं गिरता। वह हमेशा ही अपने बच्चों के लिए बहुत उदार और बहुत समर्पित और एक मालिक जैसी महान, समुद्र के जैसी गहरे आत्मीय भाव से युक्त होती है। यही आधार है भातृत्व सम्बंध का। भाई किसी को इसलिए मानते हैं, क्योंकि जिस मां से मैंने जीवन प्राप्त किया, जिस मां के गर्भ में रहकर मैंने बाल रूप को प्राप्त किया, जिस मां के साथ रहकर मैंने अपनी अबोध अवस्था को बड़े रूप में परिवर्तित किया, उसी तरह से किसी और ने कभी किया, जिससे हमारा भातृत्व सम्बंध बना। भातृत्व का भी कारण मातृत्व ही है। मां आधार है, जो कभी भी कुमाता नहीं हो सकती। जब कारण मजबूत है, तो कार्य मजबूत होगा ही। यह नियम है कि कारण में जो गुण होते हैं, वही कार्य में आते हैं। यह दर्शन शास्त्र की पुरानी युक्ति है। तो माता में जैसे श्रेष्ठ भाव हैं, समर्पित भाव हैं, कभी भी उसमें संकुचित भाव अपने संतति के लिए नहीं आता, वह भाव स्वाभाविक रूप से भाइयों में प्रेषित होता है। भाव हैं, वासनाएं हैं, उसके लिए संस्कार हैं, जो तौर-तरीके हैं, मेरे भाई में भी आए हैं और निश्चित रूप से भाई में भी मां के जैसा ही विचार होगा, मां के जैसा ही समर्पित भाव होगा। भाई भी मां के जैसा ही दुर्गुणों से दूर होगा।
इसलिए भातृत्व को महत्व देने की पुरानी परंपरा है। यह सर्वश्रेष्ठ आधार है, अन्य सम्बंधों का आधार उतना मजबूत नहीं है, इतना बड़ा नहीं है, इतना व्यवस्थित और समर्पित नहीं है। भातृत्व का आधार संसार में सबसे सशक्त होता है। भगवान की दया से, माता के सारे संस्कार पुत्रों में आते हैं, संतति में आते हैं, तो आदमी सोचता है कि जैसी मेरी मां है, वैसे ही मेरे भाई हैं। मां जैसे जीवन भर सम्बंध का निर्वाह करती है निश्छल भाव से समर्पित होकर, वैसे ही मेरा भाई भी करेगा। मेरे लोक और परलोक दोनों का ही साधक होगा, विशेष सम्बंध वाला होगा।  
क्रम:

No comments:

Post a Comment