Wednesday 28 June 2017

पायो परम बिश्रामु

समापन भाग
नारी के साथ भी ऐसा ही है। वह सुख देने वाली है, सेवा देने वाली है, परिवार को सही राह पर रखने वाली है, वह पुत्र को जन्म देती है, लेकिन अगर वह गलत दिशा में जा रही है, तो क्या किया जाए? यहां ताडऩा का मतलब पीटना नहीं है। आंख दिखाना भी ताडऩा है, सुधारने के लिए धमकाना भी ताडऩा ही है। कोई न माने, तो ताडऩा में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यह मानना कि मारने के लिए ही लिखा गया है, ऐसा किसी परंपरा में नहीं है। कोई प्यार करता है, पीटना हुआ क्या, नारी पर ही घर को छोड़ दिया जाता है, बीमार पडऩे पर नारियों का भी उपचार कराया जाता है, कोई वहां अस्पताल में उन्हें पीटता है क्या?
अमरीका में  २५ प्रतिशत से ज्यादा अश्वेत लोग जेलों में हैं, क्यों? वे अपराध करते हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा करना पड़ा है, इसे कोई गलत कहेगा क्या? ऐसा नहीं है कि हर अश्वेत को जेल में डाल दिया जाता है। 
देखना पड़ेगा, नारियों को जिस तरह से भारत में अनादिकाल से मान मिला, वैसा कहीं नहीं मिला। गोस्वामी जी ने जब रामायण शुरू किया, तो सबसे पहले नारी का ही नाम लिया। प्रथा तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा की है, लेकिन गोस्वामी जी ने कहा कि मैं नारी का पक्षधर हूं, सीता जी के लिए ही जीवन जीता हूं। उनकी वंदना से शुरुआत हुई। महर्षि वाल्मीकि ने तो रामायण का नाम ही सीताचरित रखा है। यहां लक्ष्मी जी, दुर्गा जी, सरस्वती जी, सारी जो मुख्य शक्तियां वे देवियां हैं। अपने देश में जब लोकतंत्र आया, तो इंदिरा गांधी को लोगों ने सबसे बड़े पद पर पहुंचाकर आदर दिया, वर्षों तक पद पर रखा, यदि यह धारणा होती है कि नारी तो पीटने ही योग्य है, तो उन्हें कौन प्रधानमंत्री बनाता। सोनिया गांधी आज नारी हैं, लेकिन पूरी पार्टी के लोग उन्हें सिर पर लिए हुए हैं। ऐसा किस देश में है, कहां है। अमेरिका में ऐसा है क्या, चीन में इतने बड़े-बड़े नेता हुए, नारी कहां है, उनकी पत्नियां कहां हैं? कहां गईं? दुनिया में नारी को बड़े पद पर चढऩे नहीं दिया गया, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। धर्म के सबसे बड़े क्षेत्र उत्तर प्रदेश में भी मायावती जी को भी पूरा सम्मान दिया गया। 
जहां जरूरत पड़े, वहां ब्राह्मण की भी ताडऩा होती है, क्षत्रिय की भी होती है, केवल शूद्र की ही नहीं होती। सुधार के लिए ही ताडऩा होनी चाहिए। यह कोई दूषित परंपरा नहीं है, यह कोई आलोचना नहीं है, यह कोई संकीर्णता से जुड़ी परंपरा नहीं है। यहां देखिए कि मंदोदरी का कितना सम्मान है, रावण को शिक्षा देती है। तारा का कितना सम्मान है। बाली को मारा। पूछा बाली ने कि आपने क्यों मारा?
उत्तर दिया, जब तुम्हें मालूम हो गया कि जब मैं पक्षधर हो गया सुग्रीव का, तब तुम्हें युद्ध नहीं करना चाहिए था। तुमने छोटे भाई की पत्नी को ही रख लिया। जिस पत्नी के साथ एक छत के नीचे तुम रहते हो, मोक्ष के अवलंब के रूप में उसे स्वीकार करते हो, जो घर की संरक्षिका है, जो घर का प्रकाश है, कितने तरह के अवसर तुम्हें उसके साथ सुख के मिलते हैं, तुमने उसकी सही बात को नहीं माना। इससे अधिक नारी का सम्मान क्या होगा?
इसलिए धर्म में स्त्रियों की बराबर की सहभागिता है। पुरुष जलता है हवन में तो वह दाहिने हाथ में हाथ लगाती है और पुण्य में आधी भागीदारी होती है। गोपियों को समाज ने जाने दिया, तभी तो भगवान के यहां गईं भक्ति की आचार्य हो गईं, तो यह सम्मान है कि जाने दिया, माताओं का कितना बड़ा सम्मान है।  
जब राम जी जंगल में जाने लगे, तो उनकी 350 माताएं थीं। राम जी ने कहा कि जैसे मैंने कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा को सम्मान दिया, आपके लिए भी वैसा किया है, आपको पिता दशरथ जी का पत्नी माना, इसलिए माना, क्योंकि जो हमारे पिता के लिए सम्मान स्नेह प्रदर्शित करता है, जो यह कहता है कि मेरा जीवन इनको सुख देने के लिए है, उसे मैं सम्मान अवश्य दूंगा। कोई भूल हुई हो, तो क्षमा करना, पुन: मैं १४ वर्ष बाद आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊंगा। 
वाल्मीकि रामायण में यह लिखा है।
ताडऩा के बारे गोस्वामी जी ने लिखा, केवल सुधार के लिए। ऐसा उदाहरण होना चाहिए कि जिससे दूसरों को समझ में आए। उनमें संकीर्णता का कोई भाव नहीं है। सभी लोगों को वे समान भाव से जोड़ते हैं। राम जी निषादराज को गले लगा रहे हैं। सारी दुनिया को सीखना चाहिए कि यह कोई संकीर्ण परंपरा नहीं है। हमारी परंपरा हमारी शिक्षाएं उज्ज्वल हैं। सनातन धर्म आकाश के सामान उदार है, सभी के लिए है, सबके लिए उसमें सम्मान की भावना है, विकास के लिए प्रेरणा है। सभी तरह की शक्ति देने का उदार भाव है। गोस्वामी जी को सही भाव से देखते हुए उनकी बातों को समझना चाहिए और तभी हमें सुख मिलेगा। 
जयसियाराम

ढोल गंवार शूद्र पशु नारि

भाग - ५
गोस्वामी जी के साहित्य में जो स्थापनाएं हैं, उनके विचारों के क्रम में ऐसे विचार भी प्रकट हुए, जिन्हें आपदात: देखने से लगता है कि वे संकीर्ण विचाराधारा के हैं, उनका विचार सांप्रदायिक है। वे संकीर्ण दायरे से प्रेरित होकर चल रहे हैं, यह भी उन पर लांछन लगता है।  
ढोल गंवार शूद्र पशु नारि सकल ताडऩा के अधिकारी
ढोल की ताडऩा में किसी को दिक्कत नहीं है। उसे जोर से लगाना ही पड़ता है, तभी आवाज निकलती है। जो आदमी विचारों से विकसित नहीं है, बिल्कुल ही कुछ नहीं समझता है, विवेकहीन है, शास्त्र का अध्ययन नहीं किया, इसके लिए उसे डराकर उसे विकास के लिए प्रेरित करना, इसमें विवाद नहीं है कि गंवार आदमी को रास्ते पर लाना चाहिए। 
छोटी आयु में ताडऩा की जरूरत पड़ती है, राम और कृष्ण को भी उनकी माता डराती थीं, कभी कान गरम करना भी होता होगा। अपने बच्चों को सही मार्ग पर रखने के लिए आज भी अभिभावक करते हैं। पशु को भी सत्संग सुनाकर आप श्रेष्ठ नहीं बना सकते। यह उचित नहीं है कि पशु से सबकुछ कराया जा सके, उसे अनुशासित रखने के लिए हम उसे डराते हैं, बांधते हैं, घेरते हैं। 
अब शूद्र की चर्चा। कितने शूद्रों के साथ राम की मुलाकात हुई, राम जी ने भी सबको गले लगाया, निषादराज, केवट शूद्र हैं। कोल-भील्ल, जो बड़े अपराधी हैं। उनको राम जी ने अपने प्रभाव से, स्नेह से उनमें परिवर्तन लाया। उन्हें किसी की पिटाई नहीं करनी पड़ी। न आंखें दिखानी पड़ीं, किसी तरह की ताडऩा की जरूरत नहीं पड़ी। जहां जो लोग नहीं मानते, जो लोग नहीं समझ पाते, उन्हें मारने के लिए राम जी ने धनुष उठाया। खर दूषण को मारा, राक्षस जाति के बहुत बिगड़े हुए लोगों को मारा। राम जी को कोई नहीं कहता कि वे शूद्र विरोधी हैं, क्योंकि असंख्य शूद्रों को उन्होंने श्रेष्ठ जीवन दिया। जहां औषधि काम नहीं करती, वहां डॉक्टर ऑपरेशन करते हैं। 
हम दवाई तभी तक लेते हैं, जब तक उसका असर दिखता है, लेकिन जब दवाई काम नहीं करे, तो ऑपरेशन करना ही पड़ेगा। जब यह लगता है कि किसी व्यक्ति को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन प्रयास बार-बार नाकाम हो रहा है, तो उसका एनकाउंटर हो जाता है। बड़े अपराधी को भी अच्छे विचारों, कानूनों से सुधारने की भी कोशिश होती है। 
जो नहीं मानते, उनको सुधारने की वैदिक क्रिया मानी जाति है कि ताडऩा दी जाए। ढोलक को तभी पीटा जाता है, जब आवाज की जरूरत हो। ढोलक को भी कोई यों दिन-रात नहीं पीटा जाता। गलत लोगों को रास्ते पर लाने के लिए ताडऩा कई बार जरूरी हो जाती है। गलत लोगों के जीवन को सही जगह पहुंचाने के लिए ताडऩा अनुचित नहीं है। ऐसा नहीं है कि शूद्रों की पिटाई के लिए ही कहा गया है। पशु भी प्रिय होते हैं, लोग उनसे खूब प्यार करते हैं। उसे कोई यों ही नहीं ताडऩा देता। 
क्रमश:

पायो परम बिश्रामु

भाग - ४
अभी तमाम तरह की विकृतियों से युक्त जो लोग हो रहे हैं, उन्हें गोस्वामी जी को अवश्य पढऩा चाहिए। सभी लोग उसी रीति से प्रयास करें। रामचरितमानस कालजयी रचना है। गोस्वामी जी की सभी रचनाएं मानक हैं। 
सृष्टि के लिए सबकुछ शुभ-शुभ मंगल देने वाला, हमें उनके बारह ग्रंथों के रूप में प्राप्त हुआ। वह केवल किसी मरे हुए को जिंदा कर देना, किसी बीमार को जिंदा कर देना, ये चमत्कारिक घटनाएं बहुत छोटी हैं।
करपात्री जी महाराज कहते थे कि सनातन धर्म में ऐसे चमत्कार दिखाने वाले लौंडा महात्मा होते हैं। गंगा में पैदल चल गया, इससे मानव जाति या सृष्टि का कोई भला नहीं होगा। इससे तो बेहतर वे लोग हैं जो ठगी कर रहे हैं। जब तक आदमी सही कर्म से नहीं जुड़ेगा, उसका कल्याण नहीं होगा। 
गोस्वामी जी ने इतना सब किया, उनसे लोगों ने पूछा कि आपने क्या किया, आपको क्या मिला? उन्होंने उत्तर दिया - पायो परम विश्राम... मैंने परम विश्राम को प्राप्त कर लिया। अब कभी थकावट नहीं होगी। हमने धन्य जीवन को प्राप्त कर लिया। राम जी की कृपा से ही यह प्राप्त हुआ। 
जैसे मनुष्य राष्ट्र के लिए सबकुछ करे, लेकिन महत्व ईश्वर को दे। उनकी कृपा से ऐसा हो गया। हनुमान जी ने लंका में खूब काम किए, लेकिन कहा कि मैंने कुछ नहीं किया, जो भी किया राम जी की कृपा से किया। 
राम भाव और रावण भाव में यही फर्क है। लंका के लोग कहते हैं कि यह जो भी किया मैंने किया, मैंने ही किया, लेकिन अयोध्या के लोग कहते हैं, जो किया ईश्वर ने किया, उन्हीं की कृपा से सब संभव हुआ। भारत से सारी बुराइयों को निकालने का मार्ग यही है कि कर्म का श्रेय ईश्वर को दिया जाए। गोस्वामी जी के पास कर्म योग भी है, ज्ञान योग भी है। कहा लोगों ने कि यह पहला महाकाव्य है कि जिसमें इतिहास भी है, दर्शन भी है, काव्य भी है, ऐसा कोई भी महाकाव्य नहीं है, जिसे इतिहास भी कहा जाए, काव्य भी कहा जाए और दर्शन भी कहा जाए। 
उनके ग्रंथ सूर्य के समान हैं, जो सबको जीवनी शक्ति देता है। गोस्वामी जी भक्त शिरोमणि हैं। हनुमान जी को भी भक्त शिरोमणि कहा जाता है, वे भक्त भी हैं ज्ञानी भी हैं, कर्मयोगी भी हैं। लोगों को धन्य जीवन देने वाले, करोड़ों लोग इससे प्रेरित होकर जीवन जी रहे हैं। 
संपूर्ण संसार के लोगों को यह कहना चाह रहा हूं कि शास्त्रों के संदर्भ में देखिए कि हम क्या कर रहे हैं, कहीं गलत तो नहीं कर रहे। सब शास्त्र सम्मत कर रहे हैं क्या? धन कमाना, परिवार कमाना, शक्ति कमाना, साथ-साथ ईश्वर प्रेम से ओतप्रोत होना। भगवान की संतुष्टि के लिए हम कर्म करें। लोगों को दिखाने के लिए हम न करें। गोस्वामी जी का जो जीवन काल है, उससे लेकर आज तक वे एक बड़े समुदाय के लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। 
हमें उन पर चर्चा करते हुए और भी खुशी हो रही है कि वे रामानंद संप्रदाय की परंपरा से आते हैं। जिस पीठ में मैं सेवारत हूं, उसकी चौथी पीढ़ी में गोस्वामी जी का अवतरण हुआ। रामानंदाचार्य जी के शिष्य अनंतानंद जी थे, उनके शिष्य नरहरिदास जी और उनके शिष्य हुए तुलसीदास जी। तुलसीदास जी ने लिखा है कि नरहरिदास जी अगर नहीं मिले होते, तो मैं नहीं मानता कि दया नाम की कोई चीज है। मेरा जीवन बिलख रहा था, कोई छाया नहीं थी, लेकिन नरहरिदास जी ने मेरे लौकिक जीवन को भी संभाला, ज्ञान की धारा से भी जोड़ा, सर्वश्रेष्ठ भक्ति की धारा में खड़ा करके मुझे धन्य बना दिया। 
कहा जाता है कि हनुमान जी ने राम जी को वश में कर लिया था, कहा जा सकता है कि गोस्वामी जी ने भी राम जी को वश में कर लिया। आपको जो भी चाहिए कि राम जी के जैसा जीवन करके प्राप्त कीजिए। हम सभी के लिए वे गौरव हैं। 
क्रमश: